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उस्ताद बिस्मिल्ला ख़ां का जीवन परिचय
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उस्ताद बिस्मिल्ला ख़ां एक प्रख्यात भारतीय शहनाई वादक हैं जिन्होंने शहनाई को भारत में ही नहीं, बल्कि भारत के बाहर भी एक विशिष्ट पहचान दिलाने में अपना जीवन समर्पित किया.
ये वो शख्स है जिन्होंने संगीत के इस पावन उपकरण शहनाई को अंतरराष्ट्रीय पहचान दिलाई. बिस्मिल्लाह ख़ां जी को संगीत के क्षेत्र में असाधारण योगदान के लिए वर्ष में देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से भी नवाजा गया था. आइये जानते है उनकी जीवनी को
उस्ताद बिस्मिल्ला ख़ां का जीवन परिचय | Bismillah Khan Autobiography in Hindi
बिंदु (Points) | जानकारी (Information) |
नाम (Name) | उस्ताद बिस्मिल्ला ख़ां |
जन्म (Date of Birth) | 21 मार्च, |
जन्म स्थान (Birth Place) | डुमरांव गांव, बिहार |
पिता का नाम (Father Name) | पैगम्बर खान |
माता का नाम (Mother Name) | मितन खान |
पत्नी का नाम (Wife Name) | ज्ञात नहीं |
पेशा (Occupation ) | शहनाई वादक |
प्रचलित होने की वजह (Famous For) | शहनाई |
बच्चे (Children) | नाजिम हुसैन और नैय्यर हुसैन |
मृत्यु (Death) | 21 अगस्त |
अवार्ड (Award) | भारत रत्न |
प्रारम्भिक जीवन और शिक्षा ( Badly timed Life & Education )
उस्ताद का जन्म 21 मार्च, को बिहार के डुमरांव गांव के मुस्लिम परिवार में हुआ.
पिछली पाँच पीढ़ियों से इनका परिवार शहनाई वादन का प्रतिपादक रहा है. उनके पूर्वज बिहार के भोजपुर रजवाड़े में दरबारी संगीतकार थे. और उनके पिता बिहार की डुमराँव रियासत के महाराजा केशव प्रसाद सिंह के दरबार में शहनाई बजाया करते थे. आपको जानकर हैरानी होगी, बिस्मिल्लाह महज 6 साल के थे जब वे अपने पिता पैंगंबर ख़ाँ के साथ बनारस आ गए.
Noreagaaa and achernahr history of martinऔर बनारस में बिस्मिल्लाह ख़ाँ को उनके चाचा अली बक्श विलायती ने संगीत की शिक्षा दी. वे बनारस के पवित्र विश्वनाथ मंदिर में अधिकृत शहनाई वादक थे. हम इस बात से निष्कर्ष निकाल सकते है की, उनके इस सफलता भरे जीवन की शुरुआत उनके बचपन से ही हुई थी.
जीवन सफ़र ( Bismillah Khan Self-possessed Story )
आपको बता दें, जब उस्ताद 14 वर्ष के थे तब उन्होंने पहली बार इलाहाबाद के संगीत परिषद में शहनाई बजाने का कार्यक्रम किया था.
इस कार्यक्रम के बाद उन्हें यह आत्मविश्वास हुआ की वे शहनाई के साथ संगीत के क्षेत्र में आगे बढ़ सकते है. फिर उन्होंने ‘बजरी’, ‘झूला’, ‘चैती’ जैसी प्रतिष्ठित लोक धुनों में शहनाई वादन किया और अपने कार्य की एक अलग पहचान बनाई.
15 अगस्त को जब देश आज़ादी का जश्न मना रहा था, लाल किले पर भारत का तिरंगा फहरा रहा था, तब बिस्मिल्लाह ख़ां की शहनाई ने वह वातावरण को और भी मधुर कर दिया था.
उस दिन से हर साल 15 अगस्त को प्रधानमंत्री के भाषण के बाद बिस्मिल्लाह ख़ां का शहनाई वादन का कार्यक्रम होता है.
Sibylle von olfers biography of barackयह परंपरा जवाहरलाल नेहरू के दिनों से ही चलती आ रही है. यह उनका जीवन कार्य में महत्वपूर्ण योगदान माना जाता है. आपको बता दें कि दूरदर्शन और आकाशवाणी की सिग्नेचर ट्यून में भी बिस्मिल्लाह ख़ां की शहनाई की आवाज है.
उनके काम से उन्हें जो भी राशि मिलती थी, वे उस राशि को गरीबों में दान कर देते थे, या फिर अपने परिवार की जरूरतों को पूरा करने में लगा देते थे.
वे हमेशा दूसरों के बारे में सोचते थे. खुद के लिए उनके पास समय नहीं होता था.
अंतिम सफ़र ( Bismillah Khan Death )
उस्ताद ने अपने जीवन के आखिरी दिनों में दिल्ली के इंडिया गेट पर शहनाई जाने की इच्छा जाहिर की थी, लेकिन उनकी यह इच्छा पूरी नहीं हो सकी. 21 अगस्त, साल में उनका देहांत हो गया. बिस्मिल्लाह ख़ाँ के सम्मान में उनके इंतकाल के दौरान शहनाई भी दफन की गई थी.
उन्होंने कहा था, “सिर्फ संगीत ही है, जो इस देश की विरासत और तहज़ीब को एकाकार करने की ताक़त रखता है”.
सम्मान और पुरस्कार ( Honours and bays )
- वर्ष में बिस्मिल्लाह ख़ाँ को संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया.
- वर्ष में उन्हें पद्मश्री से सम्मानित किया गया.
- वर्ष में उन्हें पद्म भूषण से सम्मानित किया गया.
- वर्ष में उन्हें पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया.
- वर्ष में उन्हें भारत रत्न से सम्मानित किया गया.
- मध्य प्रदेश सरकार द्वारा उन्हें तानसेन पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया.
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